Shibu Soren Death News 2025: दिशोम गुरु नहीं रहे, झारखंड में शोक की लहर”

Recent Comments





    शिबू सोरेन नहीं रहे: झारखंड की आत्मा को खोने का दुख


    शिबू सोरेन नहीं रहे: झारखंड की आत्मा को खोने का दुख

    5 अगस्त 2025, रांची: झारखंड के जननायक, दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। जैसे ही यह खबर सामने आई, पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, हर जगह सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा है – “बाबा”

    नेमरा से लेकर संसद तक: संघर्षों की अमिट कहानी

    शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को नेमरा गांव (झारखंड) में हुआ। बचपन में ही उनके पिता की हत्या जमींदारों द्वारा कर दी गई थी, और वहीं से उनके अंदर अन्याय के खिलाफ आग जल उठी।

    • वे कभी बड़े स्कूलों में नहीं पढ़ पाए, लेकिन जनता के बीच बैठकर पढ़ना-लिखना सीखा।
    • जंगलों में लोगों को शिक्षित किया, शोषण के खिलाफ एकजुट किया।
    • उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की, जो आदिवासी अधिकारों का प्रतीक बन गई।
    • झारखंड को अलग राज्य बनाने में उन्होंने सबसे निर्णायक भूमिका निभाई।

    ‘दिशोम गुरु’ क्यों कहे जाते थे?

    शिबू सोरेन को जनता ने “दिशोम गुरु” की उपाधि दी।

    ‘दिशोम’ का अर्थ है समाज, और ‘गुरु’ यानी मार्गदर्शक। उन्होंने न सिर्फ नेतृत्व किया, बल्कि लोगों को लड़ना भी सिखाया।

    हेमंत सोरेन का भावुक संदेश

    अपने पिता के निधन के बाद हेमंत सोरेन ने जो संदेश साझा किया, उसने पूरे देश को भावुक कर दिया। उनके शब्दों में न सिर्फ व्यक्तिगत पीड़ा थी, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के संघर्ष की कहानी थी।

    “मैं उन्हें सिर्फ ‘बाबा’ नहीं कहता था। वे मेरे पथप्रदर्शक थे, मेरे विचारों की जड़ें थे। उन्होंने हजारों-लाखों झारखंडियों को धूप और अन्याय से बचाया।”

    “जब मैं छोटा था और पूछता था – ‘बाबा, आपको दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?’ तो वे मुस्कुरा कर कहते – ‘क्योंकि मैंने उनका दुख अपना बना लिया।’”

    “आज वे नहीं हैं, पर उनकी आवाज़, उनके सपने और उनके संघर्ष, हमेशा हमारे साथ रहेंगे।”

    शिबू सोरेन की राजनीतिक उपलब्धियां

    • 3 बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे
    • 2004 में भारत सरकार में कोयला मंत्री बने
    • 7 बार लोकसभा के सदस्य रहे
    • आदिवासी अधिकार, वन संरक्षण और भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के अगुवा

    झारखंड राज्य की पहचान बन गए थे शिबू

    जब झारखंड 2000 में एक स्वतंत्र राज्य बना, तो सबसे पहले शिबू सोरेन का नाम लिया गया। लेकिन उन्होंने सत्ता की जगह संगठन और जन आंदोलन को प्राथमिकता दी।

    “यह राज्य मेरे लिए कुर्सी नहीं, यह मेरे लोगों की पहचान है।” – शिबू सोरेन

    जनता के बीच एक आम इंसान

    वे हमेशा चप्पल पहनते थे, पसीने से भीगे कपड़ों में गांव-गांव घूमते थे। उन्हें कभी भी VIP बनने की चाह नहीं थी। वह जनता के नेता थे – ज़मीन से जुड़े हुए।

    कविता के रूप में श्रद्धांजलि

    हेमंत सोरेन ने एक लंबी कविता में अपने बाबा को यूं याद किया:

    “आपने जो सपना देखा
    अब वो मेरा वादा है।
    मैं झारखंड को झुकने नहीं दूंगा,
    आपके नाम को मिटने नहीं दूंगा।”

    “बाबा, अब आप आराम कीजिए।
    आपने अपना धर्म निभा दिया।
    अब हमें चलना है
    आपके नक्शे-कदम पर।”

    “झारखंड आपका कर्ज़दार रहेगा।
    दिशोम गुरु अमर रहें।
    जय झारखंड। जय जय झारखंड।”

    झारखंड की जनता का आभार

    पूरे झारखंड में आज श्रद्धांजलि सभाएं हो रही हैं। हर गाँव, हर शहर में लोग “वीर शिबू जिंदाबाद” के नारे लगा रहे हैं। उन्होंने जो बीज बोया था, वो आज एक मजबूत झारखंड का पेड़ बन चुका है।

    📌 अंतिम शब्द – प्रेरणा बनकर जीवित रहेंगे

    शिबू सोरेन अब भले ही हमारे बीच शारीरिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनके सिद्धांत और उनका संघर्ष हमें हर दिन प्रेरित करता रहेगा।

    उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती, लेकिन उनका आदर्श हमेशा हमारे साथ रहेगा।

    📢 जनता से अपील:

    • उनके दिखाए रास्ते पर चलें – एकता, समानता और संघर्ष के साथ।
    • फर्जी खबरों से बचें और सत्य की पुष्टि करें।
    • झारखंड की अस्मिता को बनाए रखें – यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


    Trending Web Stories

    Follow:
    हिंदी समाचार, सरकारी योजना, टेक्नोलॉजी अपडेट, हेल्थ टिप्स, मोटिवेशनल ब्लॉग, हिंदी में जानकारी, एजुकेशन ब्लॉग, ट्रेंडिंग खबरें
    Leave a comment

    Leave a Reply

    79वां स्वतंत्रता दिवस: छोटे हाथों में बड़ा देशभक्ति का जज़्बा “भारत के गौरवशाली मराठा किले बने वर्ल्ड हेरिटेज साइट” प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना 2025 | 3.5 करोड़ नई नौकरियां UPSC Aspirants – सफलता की ओर कदम”